पिंजरे की एक बात

कुछ समझ नहीं आ रहा,
क्या हो रहा है यहाँ,
आज खामोश है सारा जगह,
अफ़सोस बस यह है कि हम भी है एक वजह,
कल से बहुत उम्मीद थी, मगर वक़्त से हम हारे,
आज समय इतना है, मगर गिन रहे हैं तारे,
चिड़िया जैसी कैद हैं, एक जगह दिन रात,
आज समझ आया, वह बेज़ुबान जानवरों की बात,
अजीब है हमारे कैद होने से, खिल गए दुनिया के रंग,
अब लग रहा हैं कि, हम बेवफा थे, ये धरती के संघ,
अब तक लग रहा था कि, हम ले जा रहे है देश को आगे,
मगर अब समझ आया, सिर्फ अपने स्वार्थ में हम भागे,
हैं तो हम इतने भी, अच्छे नहीं,
लेकिन अब चाहते है, कुछ करे सही,
देर ही सही, चलो आया तो होश,
बिखेरा है तो, अब सवारने में लगाएंगे जोश,
इन मुश्किलों ने सिखाया, क्या होता हैं बरकत,
सेहत के बिना, कोई काम का नहीं दौलत और इमारत,
अजीब यह हैं कि अभी है, सब आधुनिक,
फिर भी नहीं कर पा रहे है, सब ठीक,
बदलना तो हमें होगा,
उसके बिना कुछ नहीं कर पाएंगे, चिकित्सक और दरोगा,
दुसरो के लिए नहीं तो अपनों के लिए ही सही,
माना कि हैं पिंजरा मगर घर से निकलेंगे नहीं,
बस इतनी सी हैं बात,
क्या आप देंगे, इसमे मेरा साथ ?

~ मर्लिन थॉमस


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